Jharkhand Assembly Election 2024: बीजेपी का बड़ा ऐलान-‘सहारा निवेशकों का लौटाया जाएगा एक-एक पैसा’, हो सकता है गेमचेंजर!
Ranchi : एक समय था जब सहारा समूह (Sahara Group) देश के शीर्ष उद्योगों में से एक था. सहारा एयरलाइंस, सहारा मीडिया, सहारा होम्स समेत कई क्षेत्रों में सहारा समूह का दबदबा था. सहारा द्वारा एक चिटफंड योजना भी शुरू की गई थी, जिसमें करोड़ों भारतीयों ने अपनी मेहनत की कमाई कंपनी में निवेश की थी. इस योजना में निवेशक समाज के सबसे गरीब तबके से थे, जो नियमित रूप से हर दिन अपनी कमाई से 10 रुपये से 100 रुपये की छोटी पूंजी निवेश करते थे ताकि उन्हें बेहतर रिटर्न मिल सके और उनका भविष्य सुरक्षित हो सके.
लेकिन इसके अलावा जब सहारा समूह ने इन निवेशकों का पैसा लौटाने से इनकार कर दिया, तो सहारा की मुश्किलें बढ़ने लगीं और सुप्रीम कोर्ट ने सहारा पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने निवेशकों के 24 हजार करोड़ रुपये लौटाने का निर्देश दिया. निवेशकों का पैसा न चुका पाने के कारण सहारा के सुब्रत रॉय को 4 मार्च 2014 को जेल भेज दिया गया, जिससे सहारा समूह लगातार डूबता चला गया.
जानें कैसे हुआ फर्जीवाड़ा का खुलासा
बताते चलें इस पूरे फर्जीवाड़े का खुलासा तब हुआ जब नेशनल हाउसिंग बैंक को रोशन लाल के नाम से एक पत्र मिला. इस पत्र में लिखा था कि रोशन लाल इंदौर के रहने वाले हैं और पेशे से सीए हैं. उन्होंने सहारा रियल एस्टेट कॉरपोरेशन और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन की ओर से एनएचबी से बॉन्ड जारी करने का अनुरोध किया था. उन्होंने आरोप लगाया था कि सहारा ने नियमों के मुताबिक कंपनियों के बॉन्ड जारी नहीं किए. जिसके बाद यह पत्र सेबी (SEBI) को भेजा गया. दरअसल सुब्रत रॉय ने मीडिया के सामने खुलेआम कहा था कि देश का प्रधानमंत्री इटली का नहीं बल्कि भारतीय होना चाहिए.
उन्होंने कहा था कि मेरे इस बयान की वजह से देश की शीर्ष एजेंसियों ने कंपनी पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया. जिस एनबीएफसी की तारीफ यूपीए सरकार ने की थी, उस पर सवाल उठने लगे. 2008 में आरबीआई ने सहारा इंडिया फाइनेंशियल कॉर्प लिमिटेड के खिलाफ कार्रवाई करते हुए लोगों के इसमें पैसा जमा करने पर रोक लगा दी और सहारा से लोगों का पैसा लौटाने को कहा.
रिपोर्ट की मानें तो सहारा की चिटफंड योजना तत्कालीन यूपीए सरकार की मदद से ही अपने पैर पसारने लगी थी. सुब्रत रॉय ने खुद कहा था कि जब इस योजना की शुरुआत हुई और जब इसके खिलाफ कार्रवाई की गई, तब देश के वित्त मंत्री वही व्यक्ति थे. ऐसे में एक ही मंत्री होने के बावजूद सोच कैसे बदल गई. रिपोर्ट की मानें तो सहारा और यूपीए के बीच गहरी पैठ के कारण चिटफंड का कारोबार फलता-फूलता रहा, लेकिन देश का गरीब तबका इसमें पिसने लगा और उनकी गाढ़ी कमाई पर संकट गहराने लगा. लेकिन केंद्र में सत्ता परिवर्तन के साथ ही निवेशकों की उम्मीदें परवान चढ़ने लगीं.
मोदी सरकार ने ऐलान किया कि सहारा के चिटफंड में निवेश करने वाले लोगों की पाई-पाई लौटाई जाएगी. इसके लिए सरकार की ओर से पूरा खाका तैयार किया गया और लोगों से तय समय सीमा के भीतर रिफंड के लिए आवेदन करने को कहा गया. इसपर भाजपा ने खुलकर दावा किया कि सहारा के निवेशकों की पाई-पाई लौटाई जाएगी. झारखंड में पार्टी ने इस मुद्दे को अहम चुनावी वादे के तौर पर आगे बढ़ाया. ऐसे में माना जा रहा है कि झारखंड चुनाव में भाजपा के लिए यह बड़ा फायदा हो सकता है और यह भाजपा के लिए गेमचेंजर साबित हो सकता है.