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लोकसभा चुनाव से ज्यादा लोगों के मन में उठ रहा एक सवाल, क्या सीएम नीतीश कुमार की तबीयत इतनी है खराब?

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Patna : एक तरफ बिहार के सियासी गलियारे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तबियत खराब रहने से हलचल मची हुई है. वहीं दूसरी तरफ लोग इस बात से भी चिंतित है कि क्या सीएम नीतीश की तबियत इतनी खराब है? बात की जाए मंगलवार यानी की 14 मई की तो उसदिन पीएम मोदी ने बरारस से नामांकन किया. जहां दिग्गजों का हुजूम उमड़ा. लेकिन सीएम नीतीश वहां नहीं गए. वहीं सचिवालय की तरफ से जारी पत्र के अनुसार सीएम नीतीश का उस दिन का प्रस्तावित कार्यक्रम भी रद्द कर दिया गया. यही नहीं बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और उनके सबसे करीबी बीजेपी दिग्गज सुशील कुमार मोदी के निधन के बाद मंगलवार को पटना में राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार करने का आदेश दिया गया, लेकिन नीतीश कुमार खुद पटना में होने के बावजूद दीघा घाट नहीं गए.

नीतीश कुमार, जो 16 वर्षों से हर साल 14 मई को अपनी दिवंगत पत्नी मंजू सिन्हा की पुण्य तिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए 14 मई को पटना के कंकड़बाग पार्क में उनकी प्रतिमा स्थल पर जाते थे, मंगलवार को उनकी 17वीं पुण्य तिथि पर नहीं गए.

सवाल उठना स्वाभाविक था, तभी खराब स्वास्थ्य को लेकर एक लाइन की सरकारी विज्ञप्ति जारी की गयी. हालांकि, वह इन तीन स्थानीय अवसरों में से दो से चूक गए. उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड के नेताओं को चिंता सता रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रोड शो के दौरान मुख्यमंत्री की तस्वीरें देखकर बिहार की आम जनता भी परेशान है. वह पूछ रही हैं कि क्या नीतीश कुमार ज्यादा मुसीबत में हैं? मांग उठ रही है कि सीएम नीतीश कुमार का हेल्थ बुलेटिन जारी किया जाए.

तब बीजेपी हेल्थ बुलेटिन की मांग कर रही थी, अब चुप है

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार न तो पहले जैसे रहे हैं और न ही पहले जैसे दिखते हैं – यह बात पिछले नौ महीने से हवा में है. तब महागठबंधन की सरकार थी. जेडीयू की कमान तत्कालीन अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह संभाल रहे थे. तब भारतीय जनता पार्टी विपक्ष में थी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लगातार अपने अजीबो-गरीब बयानों और अजीबोगरीब हरकतों के कारण चर्चा में आने लगे. मंत्री अशोक चौधरी का सिर फोड़ना, पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को डांटना, मीडिया के सामने हाथ जोड़कर झुकना, विधानमंडल के दोनों सदनों में जनसंख्या नियंत्रण का फॉर्मूला बताना…जैसी कई घटनाओं के बाद बीजेपी ने आरोप लगाया कि सीएम नीतीश कुमार के साथ साजिश रची जा रही है. उन्हें गलत दवाएं दी जा रही हैं. तब तत्कालीन विपक्षी दल बीजेपी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के स्वास्थ्य बुलेटिन की मांग की थी.

 28 जनवरी को नीतीश कुमार की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में वापसी हो गई और बीजेपी की मांग यहीं खत्म हो गई. हालांकि, इसके बाद भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कभी सहज नहीं दिखे. यहां तक कि जब उन्होंने मंच पर प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ में गाना गाया तो भी उनके अंदाज पर सवाल उठे. तब भी जब वे 400 सीटों की जगह 4000 लोकसभा सीटें जीतने की बात करते थे. चाणक्य स्कूल ऑफ पॉलिटिकल राइट्स एंड रिसर्च के अध्यक्ष सुनील कुमार सिन्हा सीधे कहते हैं- ”बीजेपी को पहल करनी चाहिए, क्या वाकई पार्टी को नीतीश कुमार की चिंता 28 जनवरी से पहले थी या अब है.”

हर तरफ उठ रहे हैं सवाल

अब पिछले रविवार को जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार रोड शो में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपनी कार में दिखे तो यह बात तुरंत साफ हो गई कि कुछ तो गड़बड़ है. इसके 24 घंटे बाद ही उनके पांच दशक पुराने सहयोगी सुशील मोदी के निधन की खबर सामने आई और अगले दिन सरकार ने बताया कि मुख्यमंत्री बीमार हैं, इसलिए उनकी सभी सार्वजनिक गतिविधियां स्थगित की जा रही हैं.

लेकिन, मुख्यमंत्री सचिवालय की ओर से नीतीश कुमार की बीमारी को लेकर कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गयी. हालात ऐसे हैं कि मुख्यमंत्री सचिवालय के अधिकारी सीधे तौर पर इस सवाल से बच रहे हैं कि वह बीमार कैसे हैं. आम जनता जानना चाहती है कि क्या नीतीश कुमार की बीमारी का संबंध उनकी मानसिक स्थिति से है और अगर ऐसा है भी तो क्या उनका इलाज ठीक से हो रहा है या नहीं. इसलिए हेल्थ बुलेटिन की मांग बिल्कुल भी गलत नहीं है.’

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