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Jharkhand Tourism : प्रकृति की गोद में बसा पारसनाथ मंदिर आखिर क्यों है जैन समाज के लिए इतनी खास

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BY-SHIVANI SHAW

Parasnath Temple : झारखंड के पर्यटन स्थल ही नहीं बल्कि यहां के तीर्थ स्थल भी काफी लोकप्रिय हैं. यहां के तीर्थ स्थलों के दर्शन के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं. इन्हीं तीर्थ स्थलों में से एक है पारसनाथ पर्वत. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस पारसनाथ पर्वत को जैन समुदाय के लोगों का सबसे बड़ा धार्मिक स्थल कहा जाता है. हर साल बड़ी संख्या में जैन अनुयायी या जैन समुदाय के लोग झारखंड के सबसे ऊंचे पर्वत पारसनाथ पर्वत पर अपनी आध्यात्मिकता और मोक्ष के लिए आते हैं. पारसनाथ पर्वत को श्री सम्मेद शिखर जी के नाम से भी जाना जाता है. जैन समुदाय की श्री सम्मेद शिखर जी में अपनी अलग आस्था है.

पारसनाथ पर्वत

झारखंड राज्य के गिरिडीह जिले में 1,365 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पारसनाथ पर्वत और श्री सम्मेद शिखर जी जैन धर्म के लोगों के लिए पवित्र और महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल हैं. कहा जाता है कि इसी पर्वत पर जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों (जैन गुरुओं) में से 20 ने मोक्ष प्राप्त किया था, जिनमें 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ भी शामिल थे. 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के इसी पर्वत पर मोक्ष प्राप्त करने के बाद ही इस पर्वत का नाम पारसनाथ पड़ा. इस पारसनाथ पर्वत की विभिन्न चोटियों पर कई टोंक हैं, जिन पर तीर्थंकरों के पदचिह्न मौजूद हैं, जिनकी पूजा जैन धर्मावलंबी करते हैं. 1365 फीट ऊंची चढ़ाई पूरी करने के बाद जैन अनुयायी भगवान पार्श्वनाथ टोंक और अन्य टोंकों के दर्शन कर सम्मेद शिखर पर जाने की अपनी इच्छा पूरी करते हैं. वहीं संथाल समुदाय इस पर्वत को “मरंग बुरु” पर्वत के नाम से संबोधित करता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, पर्वत पर मौजूद मंदिर करीब 2000 साल पुराने हैं. साथ ही, इन मंदिरों का निर्माण मगध के राजा बिंबिसार ने करवाया था.

पारसनाथ पर्वत की मान्यता

पारसनाथ पर्वत जैन समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है. हर जैन की अपने जीवन में यही इच्छा होती है कि वह इस पारसनाथ पर्वत पर आए और मोक्ष प्राप्त करे. क्योंकि, उनका मानना ​​है कि इस पर्वत पर आकर भगवान पारसनाथ के दर्शन मात्र से व्यक्ति पापों से मुक्त हो जाता है और मृत्यु के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. साथ ही यहां आकर उन्हें आत्मिक शांति और मुक्ति मिलती है. देशभर से लाखों जैन अनुयायी यहां आते हैं. जैन अनुयायी इसे अमर तीर्थ भी कहते हैं. क्योंकि पारसनाथ पर्वत का हर क्षेत्र कई जैन मुनियों और महामुनिराजों के यहां तपस्या करने और मोक्ष प्राप्त करने के कारण पवित्र हो गया है. पर्वत की पूजा करने के लिए भक्तों को 27 किलोमीटर लंबी यात्रा करनी पड़ती है. यानी 27 किलोमीटर में 9 किलोमीटर की चढ़ाई और 9 किलोमीटर की उतराई और 9 किलोमीटर पर्वत पूजा है. पूजा करने के लिए भक्त रात के 2 बजे से ही पर्वत पर चढ़ना शुरू कर देते हैं, पर्वत पर चढ़ने में पूरे 12 घंटे लगते हैं. वहीं, लोग पूजा करने के बाद ही अन्न या जल ग्रहण करते हैं.

कैसे पहुंचें पारसनाथ

पारसनाथ पर्वत तक पहुंचने के लिए कोई सीधी बस या ट्रेन सेवा नहीं है. पर्वत से 20 किलोमीटर दूर पारसनाथ रेलवे स्टेशन स्थित है. ऐसे में अगर आप हवाई जहाज से यहां आना चाहते हैं तो रांची एयरपोर्ट आ सकते हैं. जिसके बाद आप एयरपोर्ट से बस या किसी भी वाहन से यहां पहुंच सकते हैं. इसके अलावा आप बोकारो, रांची, गिरिडीह और धनबाद से ट्रेन से भी यहां पहुंच सकते हैं. इसके अलावा यहां पहुंचने के लिए गिरिडीह से ट्रैकिंग भी की जा सकती है. 27 किलोमीटर लंबी इस यात्रा को पूरा करने में 8 से 10 घंटे का समय लगता है. लेकिन इस लंबी यात्रा में आप खूबसूरत प्राकृतिक नजारों और घने जंगलों से गुजरते हुए अनुभव कर सकते हैं.

रहने की व्यवस्था

यहां तीर्थयात्रियों के लिए ठहरने की भी व्यवस्था की गई है. यह व्यवस्था पहाड़ की तलहटी में स्थित मधुबन में की गई है. यहां करीब 20 से 30 छोटी-बड़ी धर्मशालाएं और बड़े होटल हैं. जहां आप अपनी सुविधा के अनुसार रुक सकते हैं.

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