अमया संगठन ने सरकारी दावत-ए-इफ्तार का किया विरोध, सरकार से ठोस नीतिगत फैसले की मांग
Ranchi: झारखंड सरकार द्वारा मुख्यमंत्री आवास पर आयोजित दावत-ए-इफ्तार और पूर्व मंत्रियों द्वारा आयोजित इफ्तार को लेकर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं. मुस्लिम समुदाय के युवा और बुद्धिजीवी इसे महज एक प्रतीकात्मक सम्मान मान रहे हैं और सरकार से ठोस नीतिगत फैसले की मांग कर रहे हैं, ताकि समुदाय को वास्तविक लाभ मिल सके.

अमया संगठन के केंद्रीय अध्यक्ष एस अली ने कहा कि यह विरोध प्रदर्शन सरकार के खिलाफ नहीं है, बल्कि मुस्लिम समुदाय के शिक्षा, रोजगार, न्याय और अधिकारों से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों के समाधान की मांग पर केंद्रित है. उन्होंने कहा कि झारखंड में इंडिया अलायंस सरकार के दूसरे कार्यकाल के बावजूद मुस्लिम समुदाय के बुनियादी मुद्दों पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. अबुआ बजट में मुस्लिम समुदाय के उत्थान के लिए कोई नई योजना लागू नहीं की गई, बल्कि अल्पसंख्यक कल्याण के बजट में कटौती की गई.

एस अली ने सवाल उठाया कि उर्दू शिक्षकों की बहाली, बुनकरों के लिए योजनाएं, भूमिहीन मुसलमानों के अधिकार, एमएसडीपी योजना, मदरसा आलिम-फाजिल की डिग्री की मान्यता, मॉब लिंचिंग पर कानून, रांची से हज यात्रा की सुविधा, मुस्लिम त्योहारों की छुट्टियों में बढ़ोतरी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर विधानसभा सत्र में सरकार की ओर से कोई स्पष्ट जवाब क्यों नहीं आया? उन्होंने 10 जून 2022 के रांची गोलीकांड के पीड़ितों के लिए न्याय की मांग की और अल्पसंख्यक कल्याण विभाग द्वारा गठित 15 सूत्री समिति में बाहरी और अयोग्य व्यक्तियों की नियुक्ति पर भी सवाल उठाए.
एस अली ने कहा कि जब सरकार मुस्लिम समुदाय के बुनियादी मुद्दों पर कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है तो दावत-ए-इफ्तार का क्या औचित्य है? उन्होंने सरकार से अपील की कि वह महज प्रतीकात्मक सम्मान से आगे बढ़कर मुस्लिम समुदाय के कल्याण के लिए ठोस योजनाएं बनाए और उन्हें प्रभावी ढंग से लागू करे।